“सनसनी सवाल” IAS अधिकारी को मोबाइल से इतना “डर” क्यों बलौदाबाजार कलेक्टर. ?

बलौदाबाजार जिले के कलेक्टर दीपक कुमार सोनी ने अपने कार्यालय के बाहर एक बोर्ड लगा रखा है, जिसमें लिखा है, “कार्यालय में प्रवेश करने से पहले मोबाइल बाहर जमा करें।” यह आदेश सीधे तौर पर सवाल खड़ा करता है कि आखिर कलेक्टर को मोबाइल से इतना डर क्यों है? जबकि जिले के न्यायालयों में मोबाइल साइलेंट मोड में रखने की सलाह दी जाती है। इससे एक स्पष्ट संदेश जाता है कि न्यायपालिका नियमानुसार काम कर रही है, और कोर्ट की कार्रवाई में पारदर्शिता बरकरार रहती है।कलेक्टर कार्यालय में इस प्रकार का फरमान क्यों जारी किया
गया है, यह समझ से परे है। प्रशासनिक प्रक्रिया में पारदर्शिता और जवाबदेही का होना अत्यंत आवश्यक है, लेकिन मोबाइल पर प्रतिबंध लगाने से ऐसी व्यवस्था पर सवाल उठने स्वाभाविक हैं। क्या कलेक्टर को यह भय है कि उनके कार्यालय में आने वाले लोग किसी भी प्रकार की बातचीत रिकॉर्ड कर सकते हैं, जिससे प्रशासन की कार्यशैली पर उंगली उठ सकती है? कुछ समय पहले जनसंवाद प्रतिनिधि ने कलेक्टर सोनी से इस मुद्दे पर चर्चा की थी और अनुरोध किया था कि न्यायिक मानदंडों का पालन करते हुए मोबाइल प्रतिबंध को हटाया जाए। लेकिन, कलेक्टर ने इस पर कोई गंभीर कदम नहीं उठाया और उनके कार्यालय के बाहर अब भी वही बोर्ड चस्पा है।वहीं, पुलिस अधीक्षक के कार्यालय में भी मोबाइल फोन ले जाने पर रोक है। यह रोक किस आधार पर लगाई गई है, इस पर सवाल खड़ा होता है। क्या यह किसी प्रकार के भ्रष्टाचार, अनुशासनहीनता या अव्यवस्था को छिपाने का प्रयास है? कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक के इस रवैये ने जनता के बीच असमंजस पैदा कर दिया है।प्रशासनिक प्रक्रियाओं की पारदर्शिता और कार्यप्रणाली पर विश्वास तभी कायम हो सकता है जब जनता को यह विश्वास हो कि अधिकारियों के निर्णयों में ईमानदारी और निष्पक्षता है। कलेक्टर को इस मामले को गंभीरता से लेते हुए स्पष्ट और पारदर्शी नीति अपनानी चाहिए ताकि आम जनता के मन में सवाल न उठें और प्रशासन पर विश्वास कायम रहे।