
छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के प्रांतीय सम्मेलन में जिले के साहित्यकारों ने दी उपस्थिति,
जिला समन्वयक आशुतोष हुए सम्मानित
पेण्ड्रा : छत्तीसगढी़ भाषा को स्थायित्व देने एवं जन जन कर भाषा बनाने के उद्देश्य से, छत्तीसगढी़ भाषा के प्रति जागरुकता और रुचि बढ़ाने राजधानी रायपुर के होटल वुड कैसल में छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग का आठवाँ प्रांतीय सम्मेलन सम्पन्न हुआ।
इस आयोजन के माई पहुना मुख्य अतिथि विष्णुदेव साय, माननीय मुख्यमंत्री छग शासन रहे। अध्यक्षता पूर्व मंत्री एवं वर्तमान रायपुर सांसद बृजमोहन अग्रवाल ने की। रायपुर विधायक पुरंदर मिश्रा विशिष्ट अतिथि रहे। कार्यक्रम का स्वागत भाषण विवेक आचार्य संचालक संस्कृति विभाग एवं अभिलाषा बेहार सचिव राजभाषा आयोग ने प्रस्तुत किया। कार्यक्रम में जिला गौरेला पेण्ड्रा मरवाही से जिला समन्वयक युवा साहित्यकार आशुतोष आनंद दुबे सम्मिलित हुए। उनके साथ भीष्म त्रिपाठी, विश्वनाथ सोनी, रचना शुक्ला, वंदना चटर्जी, छोटेलाल बनवासी, श्रेयस सारीवान, अमन सिंह, अमिताभ चटर्जी, सूर्यप्रकाश महंत सहित कुल तेरह साहित्यकार और साहित्यप्रेमी जिला जीपीएम की ओर से सम्मिलित हुए।
कार्यक्रम में जिला समन्वयक आशुतोष आनंद दुबे को उनकी निरंतर साहित्यिक सक्रियता के लिए माननीय अतिथियों द्वारा छत्तीसगढ़ का साजकीय गमछा एवं स्मृति चिह्न प्रदान कर सम्मानित किया गया।
इस सम्मेलन में छत्तीसगढी़ भाषा और साहित्य के प्रति हम रहे कार्यों की समीक्षा के साथ ही छत्तीसगढी़ भाषा का मानकीकरण, महिला साहित्यकारों की भूमिका, राजकाज में छत्तीसगढ़ी भाषा, प्रारंभिक शिक्षा में छत्तीसगढ़ी भाषा आदि विषयों पर आमंत्रित अतिथि वक्ताओं द्वारा सूक्षमता से बात रखी गयी। माननीय मुख्यमंत्री जी ने स्कूलों में छत्तीसगढ़ी भाषा साहित्य की किताबें उपलब्ध कराने की घोषणा भी की। ताकि प्रारंभिक शिक्षा से ही बच्चों का साक्षात्कार छत्तीसगढ़ी भाषा और साहित्य से हो सके।
इस अवसर पर छत्तीसगढ़ के सभी जिलों से लगभग चार सौ से अधिक साहित्यकारों ने अपनी उपस्थिति दी तथा छत्तीसगढ़ी भाषा साहित्य के प्रति अपनी भावनाएँ प्रस्तुत किए। जिला समन्वयक आशुतोष आनंद दुबे ने कहा कि छत्तीसगढ़ी भाषा साहित्य के प्रचार प्रसार एवं संवर्धन के लिए यह महत्वपूर्ण प्रयास आगे और वृहद रूप में जारी रहेगा। जन भाषा के रूप में छत्तीसगढ़ी को विस्तार देते हुए हम साहित्य को और अधिक समृद्ध करने की दिशा में प्रयासरत हैं। छत्तीसगढ़ी भाषा की किताबें पढ़ी जाएँ और अधिक से अधिक साहित्य लिखा जाए इस दिशा में छत्तीसगढ़ के साहित्यकारों को विचार करते हुए रचना करनी चाहिए। साहित्य की समृद्धता से भाषा पुष्ट होगी। उन्होंने आगामी समय में छत्तीसगढ़ी भाषा को लेकर जिले में कार्यशाला आयोजित करने की बात कही।