
गौरेला पेंड्रा मरवाही :: वन अधिकार शाखा के कर्मचारी, SDM ऑफिस में कर रहे है बाबूगिरी विदित है कि मुख्यमंत्री भुपेश बघेल के कार्यकाल के समय वन अधिकार कानून 2006 के क्रियान्वयन के लिए प्रत्येक जिले के आदिवासी विकास विभाग में वन अधिकार शाखा का गठन किया गया है जिसके अंतर्गत जिला परियोजना समन्वयक और क्षेत्रीय कार्यकर्ता का चयन किया गया था जिसमें जिला परियोजना समन्वयक कि भूमिका है कि जिले स्तर पर हो रहे व्यक्तिगत वन अधिकार, सामुदायिक वन अधिकार और वन अधिकार कानुन से सम्बन्धित दिकक्तों और समस्याओं को सम्बंधित विभागों के साथ समन्वय स्थापित कर वन अधिकार कानून का सुचारू रूप से क्रियान्वयन करना है साथ ही व्यक्तिगत और सामुदायिक वन अधिकार के अधिकार पत्रों का डाटा डिजिटाईजेशन, जिला स्तर पर वन अधिकार समिति सामुदायिक वन प्रबंधन का प्रशिक्षण मार्गदर्शन की जिम्मेदारी आदि का कार्य किया जाना है और क्षेत्रीय कार्यकर्ता की जिम्मेदारी है कि अनुभाग स्तर पर रहे वन अधिकार कानून से सम्बंधित समस्या और दिक्कतों का हल करना ,फील्ड स्तर पर जाकर ग्राम सभाओं को दावा प्रपत्र तैयार करने उनके खाता खुलवाने से लेकर तमाम दिक्कतों का समाधान करने में मदद करना ,अनुभाग स्तर पर सचिव ,पटवारी, बीट गार्ड से समन्वय स्थापित कर समस्या का समाधान करना लेकिन जिले में एक मात्र पदस्थ क्षेत्रीय कार्यकर्ता अनुभाग में बैठकर आवक जावक का कार्य को संभालने के साथ अन्य कार्यों में लगे हुए है जिससे वन अधिकार के जमीनी स्तर पर क्रियान्वयन में समस्या आ रही है।उनकी नियुक्ति में स्पष्ट रूप से लिखा है कि वन अधिकार कानून के कार्यों में प्रगति लाने के लिए उन्हें नियुक्त किया गया है | ऐसे में वन अधिकार कानूनों का क्रियान्वयन जमीनी स्तर पर कैसे सुनिश्चित होगा ?और योजना का लाभ हितग्राहियों तक कैसे पहुंचेगा ?वन अधिकार शाखा के क्षेत्रीय कार्यकर्ता केदारनाथ श्यामले जो पिछले एक वर्ष से अनुविभागीय कार्यालय (राजस्व) पेंड्रा रोड में पदस्थ है लेकिन वह अपने मूल कार्य वन अधिकार शाखा के फील्ड स्तर पर कार्य करने को छोड़कर, आवक जावक संभालने ,जाति प्रमाण पत्र निवास ,बनाने व्यस्त है | जबकि मूल पद में न तो वह नियमित कर्मचारी और न ही दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी है जबकि क्षेत्रीय कार्यकर्ता का पद एक मुश्त मानदेय कर्मचारी है लेकिन बाबूगिरी को पूरा मनोयोग से कर रहा है | अगर ऐसे में कुछ अन्य गलत चीजें हो जाएगी तो उसका जिम्मेदार कौन होगा |क्षेत्रीय कार्यकर्ता के द्वारा अपने मूल काम वन अधिकार के सामुदायिक और व्यक्तिगत वन अधिकार दावा प्रक्रिया को छोड़कर बाकि अन्य कामों में ज्यादा ध्यान देने से जिले में दावा प्रक्रिया शिथिल पड़ा हुआ है और व्यक्तिगत वन अधिकार पत्रों के ऑनलाइन डिजिटाइजेशन का कार्य अभी तक पूर्ण नहीं हो पाया है और पूर्व में दिए गए आदेश को भी उनके द्वारा पालन नहीं किये जाने से भी सामुदायिक वन संसाधन दावा प्रक्रिया भी द्रुत गति से आगे नहीं बढ़ पाया है साथ ही वन अधिकार के पोस्ट क्लेम सपोर्ट, ग्राम सभा का क्षमता निर्माण, सामुदायिक वन संसाधन प्रबंधन समिति के खाता और गठन करने और वन अधिकार कानूनों के बारे में जमीनी स्तर पर अवगत कराना, अभिसरण के माध्यम से वन अधिकार हितग्राहियों को विभिन्न योजनों के माध्यम से लाभन्वित करना में पिछड़ा हुआ है | जिला परियोजना समन्वयक को भी अक्सर बाबूगिरी करते भी देखा गया है। ऐसे में वन अधिकार कानून हितग्राहियों के अधिकारों को कैसे सुरक्षित कर पाएगा।जिले में वन अधिकार कानून 2006 के प्रभावी क्रियान्वयन की सार्थकता इस बात पर निर्भर करती है कानून का लाभ प्रत्येक हितग्राही चाहे व्यक्तिगत हो सामुदायिक उन तक शत प्रतिशत पहुंचे इसके लिए जिला परियोजना समन्वयक और क्षेत्रीय कार्यकर्ता को बाबूगिरी न करके उनके मूल शाखा के कार्यों में विशेष भूमिका निभाना पड़ेगा अन्यथा यह भी कागजों में सिमटकर रह जाएगा और भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाएगा। मनीष सिंह धुर्वे (अध्यक्ष) सर्व आदिवासी समाज युवा प्रभाग जिला गौरेला – पेंड्रा – मरवाही